बड़ी खबर: मोहन सरकार ने रद्द किया ममलेश्वर लोक निर्माण प्रोजेक्ट, विरोध के बाद लिया बड़ा फैसला

Tuesday, Nov 18, 2025-07:01 PM (IST)

खंडवा (मुश्ताक मंसूरी) : ओंकारेश्वर की पवित्र भूमि पर ममलेश्वर लोक निर्माण को लेकर चल रहे आंदोलन ने आखिरकार वह कर दिखाया, जिसे प्रशासन और सरकार टालने की कोशिश कर रही थी। तीर्थनगरी में दो दिन तक जनजीवन ठप होने के बाद सरकार और जिला प्रशासन को घुटनों पर आकर जनता के आगे समर्पण करना पड़ा।

अपर कलेक्टर काशीराम बड़ोले द्वारा जारी आदेश में स्वीकार किया गया कि “वर्तमान स्थल पर ममलेश्वर लोक का विस्तार तुरंत निरस्त किया जाता है।” यह आदेश स्पष्ट रूप से यह साबित करता है कि प्रशासन की पूरी योजना बिना जनसमर्थन, बिना संवाद और बिना संवेदनशीलता के जबरन थोपने का प्रयास थी।

प्रशासन की सबसे बड़ी विफलता

दिन में विरोध, रात में चोरी-छिपे सर्वे! ब्रह्मपुरी वासियों ने कठोर आरोप लगाए कि दिनभर खुलेआम विरोध होने के बावजूद प्रशासन ने रात के अंधेरे में गुप्त सर्वे करवाया, जनता की भावनाओं को रौंदते हुए घर–दुकानों पर खतरे मंडराने दिए, और किसी भी स्तर पर संवाद की पहल नहीं की। स्थानीयों ने कहा कि प्रशासन का यह रवैया “थोपने वाली तानाशाही” जैसा था, जिसके खिलाफ जनता को सड़क पर उतरना पड़ा।

तीर्थनगरी में पूर्ण हाहाकार- श्रद्धालु भूखे-प्यासे भटके

सरकार–प्रशासन ने मूल सुविधाएं भी सुनिश्चित नहीं कीं दूसरे दिन भी ओंकारेश्वर पूरी तरह बंद रहा। होटल, ढाबे, चाय–नाश्ते, सब बंद, ऑटो–नाव सेवा बंद, दवाई तक नहीं मिली, बुजुर्गों को 2–3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, महिलाएं और बच्चे परेशानी में रहे।

श्रद्धालुओं ने सरकार की ओर उंगली उठाते हुए कहा “हम भगवान के दर्शन आए थे, प्रशासन ने हमें सड़क पर रुला दिया।” तीर्थनगरी जैसी जगह में इस स्तर का अव्यवस्था फैलना सरकार और जिला प्रशासन की सीधी नाकामी का प्रमाण है।

जनता की एकजुटता से प्रशासन झुका सरकार की योजना फेल – जनता की जीत

जिस प्रोजेक्ट को “विकास” के नाम पर जनता पर थोपा जा रहा था, उसे जनता के प्रचंड विरोध ने दो दिन में ही निकम्मा साबित कर दिया। अगर प्रशासन को पहले ही जनता की भावनाओं का सम्मान करना आता, तो न दो दिन बंद करना पड़ता, न श्रद्धालु परेशान होते, और न सरकार को उलटे पाँव पीछे हटना पड़ता।

प्रशासन का आदेश ही उसकी हार का लिखित प्रमाण

अपर कलेक्टर का आदेश स्वयं यह बताते हुए दिखाई देता है कि निर्णय गलत था, स्थल चयन गलत था, और प्रक्रिया पूरी तरह जनविरोधी थी। प्रशासन ने स्पष्ट घोषणा की कि अब नया स्थान जनभावनाओं के अनुसार तय किया जाएगा। यानी पूरा प्रोजेक्ट शुरू से ही जनसमर्थन के बिना चल रहा था।

ऐसा विकास… विनाश साबित होता है

सरकार के ‘विकास’ का मॉडल जनता के विरोध के सामने ढह गया। ओंकारेश्वर आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि “बिना जनमत, बिना संवाद और बिना सम्मान के किया गया कोई भी विकास… विनाश साबित होता है।” सरकार और जिला प्रशासन की गंभीर चूक,  बिना सोचे-समझे निर्णय, जनभावनाओं की अनदेखी ने ओंकारेश्वर को दो दिनों तक संकट में डाल दिया। जनता की दृढ़ता ने ही अंततः प्रशासन को झुकने पर मजबूर किया।


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Content Writer

meena

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