खैरागढ़ की धरती से गूंजी थी वो आवाज़, जिसने ‘छत्तीसगढ़’ को दिया नाम...राज्य स्थापना दिवस पर खास कहानी
Saturday, Nov 01, 2025-01:57 PM (IST)
खैरागढ़ (हेमंत पाल) : आज जब छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के 25 साल पूरे कर रहा है, तो एक सवाल फिर गूंजता है आख़िर “छत्तीसगढ़” नाम आया कहां से? इस नाम की जड़ें किसी सरकारी दस्तावेज़ में नहीं, बल्कि खैरागढ़ की मिट्टी में दबी एक कविता में हैं।
कहानी शुरू होती है सन् 1487 से, जब खैरागढ़ (तब खोलवा) के राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण राय का शासन था। आस-पास पिंडारियों का आतंक था, लोग भयभीत थे, वीरता जैसे सो चुकी थी। उसी कठिन समय में दरबार के कवि दलपत राव ने एक दिन जोश से भरी पंक्तियां सुनाईं..
गढ़ छत्तीस में न गढैया रही,
मर्दानी रही न मर्दन में,
कोउ न ढाल अढैया रही।”
बस, यहीं पहली बार “छत्तीसगढ़” शब्द गूंजा!
दलपत राव की कविता ने राजा के भीतर सोई वीरता को जगा दिया। उन्होंने सेनाओं को संगठित किया, किले बनवाए और खैरागढ़ को राजधानी बनाया। इसी क्षण से इस धरती को मिला नाम “छत्तीसगढ़”, जो आगे चलकर पूरे प्रदेश की पहचान बना।
इतिहासकारों और किताबों में भी यही दर्ज है, कवि दलपत राव ने ही इस शब्द का प्रथम प्रयोग किया था। बाद में मराठों और अंग्रेजों के दौर में यह नाम आधिकारिक दस्तावेज़ों में शामिल हुआ। आज जब छत्तीसगढ़ अपनी रजत जयंती मना रहा है, तो यह कहानी याद दिलाती है। यह नाम सिर्फ़ नक्शे की रेखा नहीं,बल्कि वीरता, संस्कृति और अस्मिता की आवाज़ है।
खैरागढ़ की वही धरती आज भी कहती है
जहां से गूंजी थी वो आवाज़, वहीं से शुरू हुई छत्तीसगढ़ की पहचान।”

