'अग्नि परीक्षा का चुनाव' अपने समर्थकों को टिकट दिलवाना सबसे बड़ी चुनौती, पाले से वोटबैंक छिटकने का भी डर
5/16/2022 5:20:52 PM

ग्वालियर (अंकुर जैन): सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के आदेश अब मध्य प्रदेश (madhya pradesh) में निकाय चुनाव होना है। ये अब लगभग साफ हो चुका है। कि कभी भी चुनाव की तरीखों का एलान चुनाव आयोग कर सकता है। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव (local body election madhya pradesh) होना है। लेकिन इससे पहले अग्निपरीक्षा ग्वालियर-चंबल अंचल (gwalior and chambal division) के दिग्गज नेताओं को देनी होगी। सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा केंद्रीय ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiradiya scindia) और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (narendra singh tomar) की होगी। क्योंकि बीते सालों में कांग्रेस में सिंधिया (scindia) की मर्जी के बगैर चंबल में एक टिकट भी किसी को नहीं मिलता था। बावजूद इसके 40 साल के इतिहास में आज तक कोई बीजेपी (bjp) के बगैर भी नहीं बना है।
दो केंद्रिय मंत्रियों के सामने खड़ी हुई टिकट दिलवाने की दुविधा
इन चुनावों (election 2022) में सबसे ज्यादा घमासान भाजपा में होने की आशंका है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiradiya scindia) के सामने अपने साथ भाजपा में आए पूर्व पार्षदों को टिकट दिलाने की प्राथमिकता होगी और नए कार्यकर्ताओं की भी उम्मीदें जुड़ गई हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, बीजेपी सांसद विवेक शेजवलकर और बीजेपी नेता जयभान सिंह पवैया के सामने भी दुविधा है। अगर वे अपने समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा पाए, तो वह पाला बदल सकते हैं।
अपने समर्थकों को टिकट दिलवाना बड़ी चुनौती
अग्निपरीक्षा ग्वालियर चंबल अंचल के दिग्गज नेताओं की इसलिए भी है। क्योंकि उनके लिए स्टेशन व विमानतल पर माला लेकर खड़े होने वाले हर 10 में 3 कार्यकर्ता पार्षद का टिकट मांगने के लिए तैयार हैं। इसके बाद कैबिनेट मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह, पूर्व मंत्री इमरती देवी, माया सिंह, नारायण सिंह कुशवाह, पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल, पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा (Tomar, Kushwah, Imarti, Goyal, Mishra) भी चाहेंगे कि उनके संभावित विधानसभा क्षेत्र में लोगों के बीच पकड़ मजबूत करने के लिए समर्थकों को टिकट मिले।
टिकट के लिए कांग्रेस में भी खलबली
वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) का संगठनात्मक रूप से नए परिदृश्य में पार्षद के चुनाव में समर्थकों को संतुष्ट करना आसान नहीं है। उनके समर्थकों ने कांग्रेस (congress) का वो जमाना देखा है, जब महल से प्रदेश नेतृत्व के सामने भेजी जाने वाली सूची में कांटछांट होने की गुंजाइश न के बराबर होती थी। बीजेपी (bjp) की रीति-नीति कांग्रेस से उलट है। यहां टिकट का फैसला एक-दो नेता नहीं संगठन करता है, नेता केवल नाम भेज सकता है। उन्हें यह भी पूछने का अधिकार नहीं होता कि समर्थक का नाम टिकट की सूची से क्यों कट गया।वैसे कांग्रेस नेता जरूर सुकून में हैं। क्योंकि इस बार टिकट के लिए महल में हाजिरी नहीं लगानी पड़ेगी। दूसरा उन्हें पता है कि उनके हाथ में खोने के लिए कुछ नहीं है।
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