बुंदेलखंड की ‘क्रांति’! छोटे से गांव की 12 साल की लड़की का क्रिकेट जुनून,पहनने को जूते नहीं और जेब में पैसा नहीं..
Monday, Oct 06, 2025-09:19 PM (IST)

छतरपुर( राजेश चौरसिया): जो कभी बिना जूते नेट्स में दौड़ती थी, आज वही बल्लेबाज़ों को डराती है। यही कहानी है छतरपुर की क्रांति की। बुंदेलखंड के छोटे से गाँव घुवारा में, 12 साल की क्रांति गौड़ हर दिन सूखी और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर क्रिकेट खेलती थी।
ना जूते, ना पूरा किट, सिर्फ़ हौसला और जुनून है। छह भाई-बहनों में सबसे छोटी, क्रांति ने देखा कि उसके माता-पिता रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए कितनी मेहनत करते हैं। जब उनके पिता की नौकरी चली गई, तो माँ ने अपने गहने बेच दिए, ताकि क्रांति खेलना जारी रख सके। आठवीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा, लेकिन उसका सपना नहीं रुका। एक दिन जब लोकल मैच में खिलाड़ियों की कमी थी, क्रांति ने खुद को मैदान में उतारा और ऐसी गेंदबाज़ी की कि 'प्लेयर ऑफ़ द मैच' बन गई। क्रांति के पास जूते तक नहीं थे।
कोच राजीव बिठारे ने उसकी प्रतिभा देखी और उसे साई अकादमी ले गए। पहला यूनिफॉर्म और 1600 रुपए दिए ताकि वह क्रिकेट स्पाइक्स खरीद सके। तो इस तरह से छोटे से गांव घुवारा की 12 साल की क्रांति ने अपनी प्रतिभा को निखारा है और वो आगे बढ़ती जा रही है।