गोबर से बनी गणेश प्रतिमाओं की बढ़ी मांग, मूर्तिकारों की हुई चांदी

9/10/2021 5:00:56 PM

अनूपपुर(विनय शुक्ला): अनूपपुर जिले में गणेश चतुर्थी के मौके पर गोबर के गणपति विराजेंगे। गोबर के गणेश बनाने के पीछे आज के प्रदूषित वातावरण में प्रकृति को एक अच्छा पोषण देने की सोच है। साथ ही गाय एवं इसके उत्पाद की सुरक्षा व उपयोग एक नवाचार शुरू करने के उद्देश्य से बनाई जा रही है। गोबर की प्रतिमायों की बाजार में काफ़ी मांग भी है। इस बार मिट्टी और पी ओ पी की मूर्तियों की जगह जिले में गोबर से बनाई गई गजानन की प्रतिमाओं का ज्यादा चलन होगा। यह मूर्तियां पूरी तरह से इको फ्रेंडली भी है। जिले के जैतहरी तहसील क्षेत्र के ग्राम अंजनी में प्रज्ञा मंडल और स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा गोबर तुलसी, गंगाजल, एवं पवित्र वस्तुओं द्वारा यह मूर्तियां बनाई गई है जिले के बाजारों में यह स्वदेशी मूर्तियां पहुंच गई हैं और लोगों के द्वारा पसंद भी खूब की जा रही हैं।

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अनूपपुर जिले मे जहां एक तरफ गोबर से बनी मूर्तियां व अन्य उत्पाद की मांग बाजार में बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ इस काम में लगे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है और ग्रामीण जो शहरों की तरफ रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं उनके लिए निश्चित ही यह नवाचार रोजगार के अच्छे अवसर प्रदान करेगा। यहां काम करने वाले लोगों का कहना है कि इससे उनकी आमदनी भी बढ़ गई है वो 4 से 5 हजार रु महीने अभी कमा रहे हैं।

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पी ओ पी की मूर्तियों का आना बंद होने के बाद अब गोबर की बनी मूर्तियां बाजार में पहुंच रही हैं जिससे मूर्ति बनाने वाले मजदूरों को रोजगार मिल रहा है और मूर्ति बनाने वाले लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। जैतहरी तहसील क्षेत्र के ग्राम अंजनी स्थित है प्रज्ञा मंडल गौशाला संस्था की पहल पर यहां की गंगा अजीविका स्व सहायता समूह द्वारा इस वर्ष गोबर की मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया गया है। इन मूर्तियों की अच्छी मांग भी बनी हुई है।

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प्रज्ञा मंडल के संचालक भारत राठौर ने बताया कि संस्था गायत्री परिवार से संबंधित है और गौशाला का संचालन करती है। गाय की हर वस्तु पवित्र और उपयोगी है। गाय के गोबर से मूर्तियां बनाने का नवाचार शुरू किया गया। जुलाई माह से मूर्तियां बनाने का कार्य शुरू किया गया है। विभिन्न डिजाइन में यह मूर्तियां तैयार की गई है। मूर्तियां बनाने में गोबर, तुलसी, गंगाजल, मौली धागा और हल्के रंगों का इस्तेमाल किया गया है ताकि मूर्तियां आकर्षक लुक में नजर आए। मूर्ति निर्माण के दौरान गायत्री मंत्र से इन्हें अभिमंत्रित भी किया गया है।

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स्व सहायता समूह के 2 सदस्य इंद्रावती राठौर और कुमारी शालिनी राठौर ने नागपुर गायत्री परिवार से गोबर से बनी वस्तुओं को बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया और अब यह महिलाएं स्थानीय स्तर पर स्वदेशी मूर्तियां का निर्माण कर रही हैं। संस्था का पहला वर्ष और पहला प्रयास है। करीब 400 सौ मूर्तियां बनाई गई हैं। गोबर से बनी मूर्तियां की बात करें तो बाजार में उपलब्ध अन्य मूर्तियों की तुलना में इनके दाम भी कम है। बता दे यह संस्था पर्यावरण को देखते हुए पूरी तरह इको फ्रेंडली मूर्तियां तैयार की है। अनूपपुर जिले सहित शहडोल जिले में यह मूर्तियां बाजार में उपलब्ध कराई गई हैं तथा छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ स्थानों में भी गोबर से बनी मूर्तियां भेजी गई हैं।


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Content Writer

meena

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