पवित्र नगरी पन्ना में नवरात्रि की धूम, कलेही माता मंदिर, श्री पदमावती धाम व कुआंतल में लग रहा भक्तों का तांता..
Friday, Oct 11, 2024-11:47 AM (IST)
पन्ना : मंदिरों की पवित्र नगरी पन्ना में इन दिनों नवरात्रि की धूम देखने को मिल रही है। बता दें कि यहां विराजमान पवई की मां कलेही, पन्ना की श्री पदमावती एवं कुआंतल की माता पूरे बुंलेखण्ड की आस्था का केंद्र है ऐसी मान्यता है इन सभी मंदिरों में भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते है माता उन्हें अवश्य ही पूरी करती है। पन्ना जिले के पवई में स्थित कलेही माता का मंदिर जो पूरे बुंदेलखंड ही नहीं अपितु देश भर में प्रसिद्ध है। विंध्य पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसे पन्ना जिले की पवई में है।जिसका नाम जुबां पर आता है तो जेहन में दिव्य शक्ति मां काली का दिव्य दर्शन सामने आता है, वैसे तो शक्ति स्वरुपा नारायणी के अनेक रूप हैं, जो देश भर के अलग-अलग स्थान पर शक्तिपीठ के रूप में विद्वान है। दुर्गा सप्तशती में वर्णित नव देवियों में मां कलेही सप्तम देवी कालरात्रि ही है। अष्टभुजाओं में शंख चक्र, गदा, तलवार तथा त्रिशूल उनके आंठो हाथों में है, पैर के नीचे भगवान शिव है। उनके दाएं भाग में हनुमान जी तथा बाय भाग में बटुक भैरव विराजमान है। मां हाथ में भाला लिए महिषासुर का वध कर रही है, यह विलक्षण प्रतिमा 14 -16 शताब्दी की चंदेल कालीन है।
●नगर से 2 किलोमीटर दूर...
मां कलेही पवई नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर पतने नदी के तट पर विराजमान है, इस स्थान की छटा बड़ी मनोरम है। वैसे तो यहां वर्ष भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है, पर चैत्र नवरात्रि में तो यहां विशाल मेला लगता है। जिसका प्रमाण तकरीबन पांच सौ वर्ष पुराना है। मेले में दूर-दूर से व्यापार करने के लिए व्यवसायी आते हैं। नव वर्ष पर भी जिले ही नहीं बल्कि अन्य जिलों व अन्य प्रदेशों से भी लाखों की संख्या में माता कलेही के दर्शन करने के लिए आते हैं। प्राचीन समय से अनाज, मसालों एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं का क्रय-विक्रय भी इसी मेले के माध्यम से होता रहा है।
कहा जाता है कि पवई नगर के नगायच परिवार के भागीरथ प्रसाद नगायच और पत्नी देवी जिनकी कोई संतान नहीं थी, वह प्रतिदिन पहाड़ी पर चढ़कर माता कलेही की पूजा करने के लिए जाती थी, जिनकी कृपा से 60 वर्ष की उम्र में उन्हें बेटा हुआ था। जब वह गर्भ से थी तो उन्हें पहाड़ चढ़ने में परेशानी होती थी जिसकी वजह से उन्होंने एक दिन माता से प्रार्थना की कि वह अब यहां आने में असमर्थ है, तो माता ने उनसे कहा कि तू आगे आगे चल पीछे मुड़कर नहीं देखना जहां तू पीछे मुड़कर देखेगी मैं वही विराजमान हो जाऊंगी, इस तरह पतने नदी के पास पहुंचते ही जब माता की पैरों की आवाज आना बंद हो गई तो देवी नगायच ने पीछे मुड़कर देखा और माता का विग्रह वहीं पर विराजमान हो गया। उसके बाद भागीरथ नगायच के द्वारा वहा मंदिर बनवाया गया और आज परिवार सुख समृद्धि से भरपूर है। शारदेय नवरात्रि हो या फिर चैत्र नवरात्रि में जवारे बोए जाते हैं एवं उनकी पूजा की जाती है। माता कलेही को नगायच परिवार की कुलदेवी माना जाता है।
हीरों की नगरी पन्ना में प्राचीन मंदिर शक्तिपीठ मां पद्मावती देवी का स्थान है। बुंदेलखंड के लोग पन्ना की पद्मावती देवी को बड़ी देवन के नाम से जानते हैं और इनका स्थान मैहर की शारदा माता के समान है। इस मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मुराद पूरी होती है। मंदिर को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि मां पद्मावती शक्तिपीठ की कृपा से ही पन्ना इतना समृद्ध है। शक्तिपीठ को लेकर मान्यता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में पद्मावत नाम के राजा हुए थे जो शक्ति के उपासक थे। उन्होंने अपनी आराध्य देवी मां दुर्गा को पद्मावती नाम से इस प्राचीन मंदिर में स्थापित किया। कालांतर में इस क्षेत्र का नाम इसी मंदिर के कारण पद्मावतीपुरी हुआ, जो बाद में परना और वर्तमान में पन्ना के नाम से पहचाना जाता है। पद्मावती देवी का उल्लेख भविष्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी है। ये मंदिर गौण नरेशों का आराध्यस्थल भी था। मां सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। वह राजा दक्ष की बेटी थी जिसने भगवान शिव को अपनी पुत्री से शादी के लिए मना कर दिया था. उनके इनकार के बाद भी मां सती ने भगवान शिव से शादी की, एक दिन दक्ष राजा ने बड़े यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी ऋषियों और देवताओ को बुलाया लेकिन भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया. क्योंकि वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। मां सती ये अपमान नहीं सहन नहीं कर पाई. जब वे पिता से इसका उत्तर जानने यज्ञ स्थल पहुंची तो पिता ने उनका अपमान किया। भगवान शिव को भला बुरा कहा जिसके बाद मां सती ने अपने आप को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया.जब भगवान शिव हुए क्रोधितजब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो क्रोधित शिव ने यज्ञ को नष्ट कर दिया और राजा दक्ष को मार डाला, इसके बाद भगवान शिव मां सती को अपने कंधे पर बिठाकर सम्पूर्ण भूमंडल पर विचरण करने लगे, भूमंडल को स्थिर रखने के लिए भगवान विष्णु ने पीछे से अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जिस-जिस स्थान पर मां भगवती के शरीर के टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर शक्तिपीठ स्थापित हुए. पन्ना में मां के दाहिना पैर गिरा था। इस कारण इस शक्तिपीठ का नाम पद्मावती शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
पन्ना, मैहर और कलेही का चमत्कारिक त्रिकोणमैहर की शारदा माता मंदिर और पन्ना की मां पद्मावती देवी मंदिर और कलेही शक्तिधाम आपस में विशेष कोण बनाते हैं. इस मंदिर से प्रदेश के तीनों शक्ति पीठों की आपस में दूरी एक बराबर है। लोक मान्यताओं के अनुसार मां शारदा (मैहर), मां पद्मावती (पन्ना) और मां कलेही (पवई) की प्रतिमाएं हवा में 90 अंश का कोण बनाती है, और हवा में भी इन सभी मंदिरों की आपस में दूरियां लगभग 60 किलोमीटर है।