दिवाली के दूसरे दिन इंदौर के इस गांव में बरसाए जाते हैं गोले, जानें क्या है पूरा मामला?

10/29/2019 4:30:02 PM

इंदौर/बेटमा (निर्मल पेरुलिया): प्रशासन भले ही हिंगोट युद्ध के लिए प्रतिबंध लगा चुका हो। लेकिन इंदौर के गौतमपुरा गांव के लोग किसी की मानने के लिए तैयार नहीं हैं। हर बार की तरह इस बार भी प्रशासन की हिदायतों को दरकिनार करते हुए गौतमपुरा के लोगों ने हिंगोट युद्ध का आयोजन किया, और जमकर एक दूसरे पर हिंगोट चलाए।  

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हिंगोट युद्ध इन्दौर से 55 कि.मी. दूर गौतमपुरा में होता है। यह दीपावली के एक दिन बाद पड़वा के दिन खेला जाने वाला पारंपरिक 'युद्ध' है। इस युद्ध में प्रयोग होने वाला 'हथियार' हिंगोट है। जो हिंगोट फल के खोल में बारूद, भरकर बनाया जाता है। इस युद्ध मे दो टीमें आमने सामने होती हैं। एक तरफ तुर्रा दल तो दूसरी ओर कलंकी दल होता है। इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती। किन्तु सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। कई बार तो इसमें जानें भी जा चुकी हैं।

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दरअसल हिंगोट एक निम्बू के आकार जितना बड़ा फल होता है। हिंगोट नारियल की तरह बाहर से सख्त ओर अंदर से गूदे वाला होता है। योद्धा दीपावली के कई महीनों पहले से इसकी तैयारी करता है। हिंगोट चम्बल नदी के आस पास के इलाकों में मिलता है। दीपावली के अगले दिन सुबह से ही आस-पास के गांव से लेकर दूर-दूर से आये दर्शकों का जमावड़ा हिंगोट युद्ध के आस पास देखा जाता है। जैसे ही शाम के 4 बजते हैं। योद्धा अपने घरों से बाहर आते हैं, और अपने दल के साथ ढोल ढमाकों से नाचते गाते युद्ध मैदान की ओर बढते हैं। युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल के योद्धा अति प्राचीन भगवान विष्णु के अवतार देवनारायण का आशीर्वाद लेते हैं, एवं युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल आपस में गले लगते हैं। युद्ध समाप्त होने के बाद दूसरे दल के किसी योद्धा को चोट लगने पर उसके घर जाकर गले लग कर आपसी भाईचारा बढ़ाते हैं। योद्धा युद्ध के दौरान अपने हाथों में लोहे का मजबूत ढाल व सर पर साफा बांधते हैं। योद्धा अपने हिंगोट सूती कपड़े से बने झोले में रखते हैं। हिंगोट युद्ध काफी पुराना पारंपरिक का खेल है।  


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Vikas kumar

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