लाइफस्टाइल पर जमकर खर्च कर रहे आदिवासी, इस बार इतने करोड़ का रहेगा भगोरिया पर्व

3/12/2022 4:43:51 PM

झाबुआ(जावेद खान): पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर जिले के देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। होली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहता है। होली के पहले भगोरिया के सात दिन ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है। इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है।

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भगोरिया की तैयारियां आदिवासी महीने भर पहले से ही शुरू कर देते हैं। दिवाली के समय तो शहरी लोग ही शगुन के बतौर सोने-चांदी के जेवरात व अन्य सामान खरीदते हैं लेकिन भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीदारी करते हैं। लिहाजा व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है। ग्रामीण खरीदारी के दौरान मोलभाव नहीं करते, जिससे व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है। आर्थिक समृद्धि सामाजिक बदलाव भी लेकर आती है। व्यक्ति के रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता जा रहा है। आप इसे यूं समझ सकते हैं कि व्यक्ति की पहली जरूरत होती है अच्छा खान-पान, रहने को घर और कपड़े। जब ये चीजें उपलब्ध हो जाती है तो फिर वह अपनी लाइफ स्टाइल पर पैसा खर्च करता है।

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झाबुआ लोक संस्कृति के पर्व भगोरिया की शुरुआत शुक्रवार से हो गई है। अगले सात दिनों तक आदिवासी अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहेगा। झाबुआ जिले में 36 तो आलीराजपुर जिले में 24 स्थानों पर मेले लगेंगे। इस बार करोड़ों का कारोबार होने की उम्मीद है। शहर के बाजार में खरीदारी के लिए उमड़ी ग्रामीणों की भीड़ ने भी इस बात को पुख्ता किया है की। कपड़े, चांदी के गहने और शृंगार सामग्री की जमकर खरीदी हुई। जिस हिसाब से उन्होंने खरीदी में उत्साह दिखाया उससे लगता है कि भगोरिया उत्सव के दौरान कारोबार में जबरदस्त उछाल आएगा, जिससे अंचल की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। रोजगार के लिए पलायन पर गए ग्रामीण कमाई कर लौटे हैं। ऐसे में वे त्योहार के लिए खरीदारी करते है,जिससे कारोबार में उछाल आता है। खासकर सराफा व कपड़ा कारोबारी की तो दिवाली मन जाती है।

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कहां से आता है पैसा
झाबुआ-आलीराजपुर जिले से हर साल करीब दो लाख से ज्यादा ग्रामीण रोजगार के लिए पलायन कर सीमावर्ती गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र जाते हैं। वहां प्रति व्यक्ति मजदूरी की दर काम के आधार पर 400 से 500 रुपए प्रतिदिन कमाता है। यदि पांच सदस्यीय एक परिवार के हिसाब से देखें तो प्रति व्यक्ति 400 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी के मान से आंकड़ा होता है 2000 रुपए। त्योहार पर जब वे आते हैं तो जमकर खरीदारी करते हैं।

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होली तक अंचल का हर हाट-बाजार भगोरिया के रूप में सजेगा
झाबुआ अलीराजपुर के कई स्थानों पर युवकों के हाथ में बांसुरी की जगह अब मोबाइल ओर परम्परागत परिधान से अलग जीन्स टीशर्ट व रंग बिरंगे जूते और चश्मे पहने अब नजर आएंगे तो वहीं कुछ युवतियां भी परम्परागत परिधान छोड़ आधुनिक साडिय़ों में नजर आएगी। आलीराजपुर में ठेठ लोक संस्कृति के साथ ही गुजराती परंपराओं की झलक भी देखने को मिलती है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी जोड़े अपने पारंपरिक प्रेम पर्व भगोरिया की विश्व प्रसिद्ध मस्ती में डूब रहे है। सदियों से मनाए जा रहे भगोरिया के जरिए आदिवासी युवा बेहद अनूठे ढंग से अपने त्योहार को मनाते आ रहे है।

 


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Content Writer

meena

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