नरोत्तम के लिए क्या सोच रहा है भाजपा हाईकमान?

Monday, Feb 03, 2025-03:50 PM (IST)

भोपाल। (हेमंत चतुर्वेदी): चुनाव महाराष्ट्र में हो, या फिर दिल्ली में। काम सत्ता का हो, या संगठन का। जिम्मेदारी केंद्र की हो या प्रदेश की...भाजपा के कद्दावर नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा आपको ड्यूटी पर तैनात नजर आ ही जाएंगे। अमूमन जहां चुनाव की हार नेताओं को निराशा में डूबा देती है, उनकी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों को शून्य कर देती है, उस स्थिति में नरोत्तम का एनर्जी लेवल मेहनत के थर्मा मीटर का पारा तोड़कर बाहर आता दिख रहा है। नरोत्तम की अनवरत मेहनत के सवाल पर उनका एक सीधा सा जवाब ये रहता है, कि चुनाव में हार के बाद वो सरकार के काम से मुक्त हुए थे, लेकिन पार्टी के सिपाही तो अभी भी है और पार्टी उन्हें जहां और जैसे जिम्मेदारी देगी, वहीं उनकी पहली ड्यूटी है, जिसके लिए जहां वो पिछले साल भर से प्रदेश के अलग - अलग जिलों को नाप रहे हैं, तो वहीं देशभर में किसी भी कौने में अपनी पार्टी का झंडा उठाने में पीछे नहीं हटते। 

PunjabKesariअपनी अतिसक्रियता को लेकर नरोत्तम का ये तर्क पूरी तरह वाजिब है, हालांकि इस तर्क के एक साथ कई मायने निकाले जा सकते हैं, खासकर भाजपा जैसे संगठन में। गौरतलब है, कि भाजपा वो पार्टी है, जहां हर दूसरा नेता राजनीतिक क्षमताओं से लबालब है, जिसके संगठन की बुनावट इतनी सूक्ष्म और सघन है जिसमें हर कोई फिट हो ही नहीं सकता। उस स्थिति में एक चुनाव हारने के बाद भी नरोत्तम को इस स्तर की तवज्जो देना कहीं न कहीं उन्हें लेकर हाईकमान की एक अलग ही सोच को दर्शाता है। पहले उनके लोकसभा चुनाव लड़ने का जिक्र सामने आया, फिर अचानक उन्हें राज्यसभा भेजने की बात ने जोर पकड़ा। आज की तारीख में भी नरोत्तम प्रदेशाध्यक्ष की रेस में टॉप 2 में बने हुए हैं। पता नहीं इस बार भी उन्हें भाजपा की तरफ से कोई गिफ्ट मिलेगा या नहीं, और फर्ज करें, कि ये जिम्मेदारी भी उन्हें नहीं मिलती, तो क्या पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा में थोड़ी बहुत कमी आएगी? ये सवाल बहुतों के मन में बना हुआ है, लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा और नरोत्तम का कनेक्शन उस स्थिति में है, जिसे एक नेता और उसके संगठन के बीच के रिश्ते के आदर्श के तौर पर देखा जा सकता है।

PunjabKesari ऐसा रिश्ता जहां किसी से कुछ लेने की चाह नहीं है, बस दोनों एक दूसरे को दिए जा रहे हैं, एक तरफ पार्टी उन्हें एक के बाद एक जिम्मेदारी, तो दूसरी तरफ नरोत्तम तन-मन-धन से उस जिम्मेदारी को पूरा करने के प्रयास में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर नरोत्तम मिश्रा के सियासी भविष्य को लेकर तमाम कयासों और अटकलों के बीच का सार ये है, कि नरोत्तम को पद के तौर पर कोई जिम्मेदारी मिले या न मिले, लेकिन उनके राजनीतिक कौशल और संगठनात्मक क्षमता का उपयोग करने में भाजपा कभी भी कोई कंजूसी नहीं बरतेगी। फिलहाल वो दिल्ली के चुनाव में भाजपा के प्रचार में व्यस्त हैं, ये व्यस्तताएं विधानसभा चुनाव के बाद से अलग अलग जिम्मेदारियों के तौर पर उनके साथ अनवरत चली आ रही हैं। क्या भविष्य में जिम्मेदारी का ये दायरा बढ़ेगा? क्या हर मोर्चे पर तैनात अपने सिपाही को संगठन कुछ तोहफा देने का प्लान कर रहा है? सवाल तमाम है, जिनका जुड़ाव सिर्फ नरोत्तम से नहीं है, बल्कि प्रदेश भाजपा के संगठन से भी है। संगठन के उस खांचे में फिट होने के लिए नरोत्तम कितने तैयार हैं, इसका फैसला हाईकमान को ही करना है, लेकिन एक बात तो तय है, नरोत्तम को उस हिसाब से गढ़ने में हाईकमान भी पूरे दम खम से लगा हुआ है।


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Content Editor

Himansh sharma

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