बचपन में खोया हाथ फिर भी जिद और जुनून से लिखी कामयाबी की नई इबारत, जमुना उइके ने देश-विदेश में बनाई पहचान

Tuesday, Dec 03, 2024-07:15 PM (IST)

मंडला (अरविंद सोनी) : कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हो और मेहनत की लगन हो, तो हर मुश्किल राह आसान हो जाती है। मंडला जिले की जमुना उइके ने अपनी जिंदगी से यह साबित कर दिखाया। बचपन से दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि पूरे जिले और देश का नाम रोशन किया।

कठिनाइयों को दी चुनौती

1 अप्रैल 1976 को एक साधारण मजदूर और कृषक परिवार में जन्मी जमुना उइके का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा। बचपन में ही उन्होंने अपना एक हाथ खो दिया, लेकिन इस कमी को उन्होंने कभी अपने सपनों की राह में बाधा नहीं बनने दिया। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारी भी संभाली और अपने दम पर हर कठिनाई को मात दी।

खेलों में दिखाई दमदार प्रतिभा

जमुना ने जिला, संभाग और प्रदेश स्तर से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं तक का सफर तय किया। उन्होंने पैरा एथलेटिक्स में खुद को साबित किया और गोला फेंक की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर शानदार प्रदर्शन किया। भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में अपने कौशल का प्रदर्शन करने के बाद उन्होंने इंटरनेशनल एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

गुरु की प्रेरणा से हासिल की ऊंचाईयां

जमुना अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरु को देती हैं, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें दिव्यांग पैरालंपिक एथलेटिक्स खिलाड़ी बनने के लिए प्रेरित किया। जमुना ने गुरु के मार्गदर्शन में अपनी मेहनत और लगन से हर मुकाम को हासिल किया।

एक प्रेरणा बनकर उभरीं जमुना

आज जमुना न केवल खेलों में बल्कि अपने संघर्ष और आत्मविश्वास से दूसरों के लिए मिसाल बन गई हैं। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किल हालातों में अपने सपनों को छोड़ने का सोचता है।

जमुना उइके की जिंदगी यह संदेश देती है कि अगर हौसले और मेहनत का जज्बा हो, तो कोई भी कमजोरी या कठिनाई आपको सफल होने से नहीं रोक सकती। उनकी उपलब्धियां पूरे जिले के लिए गर्व की बात हैं और उनकी जिद और जुनून हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।


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meena

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