Bhopal Gas Tragedy: पहले कचरे से था खतरा, अब राख से, लोगों को विरोध जारी, परमाणु बम से कर रहे तुलना!
Tuesday, Dec 02, 2025-08:03 PM (IST)
भोपाल: गैस त्रासदी के 41 साल बाद भी जहरीले कचरे का खतरा कम नहीं हुआ है। अब उस कचरे को जलाने से बनी 899 टन जहरीली राख मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए नई चुनौती बन गई है। यह राख पीथमपुर स्थित ट्रीटमेंट प्लांट में मई–जून 2025 के बीच 337 मीट्रिक टन यूनियन कार्बाइड के कचरे को भस्म करने के दौरान निकली। भस्मीकरण प्रक्रिया खत्म हुए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन खतरनाक राख अभी भी लीक-प्रूफ कंटेनरों में एक शेड में पड़ी है, जिसे ठिकाने लगाने की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं बन पाई है।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रक्रिया अटकी
अक्टूबर में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस योजना को खारिज कर दिया जिसमें राख को इंसानी बस्तियों से 500 मीटर दूर रखने का प्रस्ताव था। अदालत ने साफ कहा कि इतनी खतरनाक राख के लिए आबादी और जल स्रोतों से पूरी तरह दूर किसी नए स्थान की तलाश की जाए। इसके बाद निपटान की पूरी योजना अधर में लटक गई है।
अधिकारियों की दुविधा- ‘भ्रम की स्थिति, आगे बढ़ने का रास्ता साफ नहीं’
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कचरे के निपटान पर रोक नहीं है, लेकिन कोर्ट के निर्देशों के चलते अब नया स्थल खोजना पड़ेगा। यह समय लेने वाली प्रक्रिया है। जब तक स्पष्टता नहीं मिलती, कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने यह भी बताया कि अक्टूबर की अनियमित बारिश के कारण लैंडफिल निर्माण में देरी हुई और कोर्ट के आदेशों ने स्थिति और जटिल कर दी।
नवंबर-दिसंबर में निपटान का प्लान था
भस्मीकरण प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि नवंबर तक सुरक्षित लैंडफिल तैयार करना था। दिसंबर तक राख के अंतिम निपटान की योजना थी। वैज्ञानिक तरीके से दफनाने में कम से कम 1 महीना लगता। लेकिन कोर्ट आदेश के बाद सारी प्रक्रिया रुक गई।
स्थानीय लोगों विरोध- यह भावी पीढ़ियों के लिए परमाणु बम जैसा खतरनाक
पीथमपुर में इस निपटान का स्थानीय समूहों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है। पीथमपुर बचाओ समिति के संयोजक हेमंत हिरोले ने कहा कि ‘यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए परमाणु बम से कम नहीं है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कह दिया है कि यह स्थल असुरक्षित है, यहां निपटान नहीं होगा। सरकार को दूसरी जगह ढूंढनी होगी।’
41 साल बाद भी गैस त्रासदी की परछाईं
इस विवाद ने फिर साबित कर दिया है कि गैस त्रासदी का जख्म अभी भी पूरी तरह भरा नहीं है। कचरा जलाने के बाद बनी तीन गुना अधिक मात्रा वाली यह राख अब सरकार, पर्यावरण एजेंसियों और स्थानीय समुदायों के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय सिरदर्द बन चुकी है।

