देश का सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर, जहां पूजा के बाद गले मिलते हैं भक्त, दर्शन मात्र से दूर होते हैं कष्ट
Thursday, Mar 27, 2025-07:00 PM (IST)

मुरैना : मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में ऐंती पर्वत पर स्थित शनि देव के मंदिर में 29 मार्च को शनिश्चरी अमावस्या पर मेला आयोजित किया जायेगा। यह शनि मंदिर देश का सबसे प्राचीन त्रेतायुगीय मंदिर है। हर वर्ष शनिश्चरी अमावस्या पर आयोजित होने वाले मेले में दूर-दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने परिवार की खुशीयाली के लिए शनि देव की पूजा पाठ करने के लिए आते है। मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, बिहार, उत्तरप्रदेश सहित अन्य स्थानों से श्रद्धालु शनिदेव के दर्शन के लिये आते है। ज्योतिषियों के मतानुसार शनि देव की मूर्ति आसमान से टूटकर गिरे उल्कापिण्ड से निर्मित हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान हनुमान जी ने अपनी बुद्धि चातुर्य से काम लेते हुये शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था। कई वर्षो तक रावण के पैरों के नीचे दबे होने के कारण शनिदेव दुर्बल हो चुके थे। वे इतने दुर्बल है कि उनका चलना मुश्किल है। हनुमान जी ने शनिदेव को पूरी ताकत से भारत भूमि पर फेका, शनिदेव मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के पास स्थित एक पर्वत पर जा गिरे, जिसे शनि पर्वत (ऐंती पर्वत) कहा जाता है।
वहीं शनिदेव की मूर्ति की स्थापना, चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य ने की थी। विक्रमादित्य ने ही शनिदेव की प्रतिमा के सामने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी। सन् 1808 ई. में तत्कालीन शासक दौलतराव सिंधिया द्वारा यहां जागीर लगाई थी। इस प्रकार का शिलालेख मंदिर में लगा हुआ है। शनि पर्वत (शनिश्चरा पहाड़ी) निर्जन वन में स्थापित होने से विशेष प्रभावशाली है। यह भी कहा जाता है कि शनि सिंगनापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित शिला को शनिश्चरा पहाड़ी से ही ले जाकर स्थापित किया गया था। शनिमंदिर में पहाड़ी से अनवरत गुप्त गंगा की धारा निकल रही है। उक्त स्थान पर निर्मित गुफाओं में संत लोग तपस्या करते थे। इस बात के प्रमाण भी है।
मान्यता है कि शनिचरा मंदिर से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। भक्त की हर मुराद पूरी होती है। साथ ही शनि दोष भी दूर होता है। खास बात यह कि इस मंदिर में शनिदेव को तेल अर्पित करने के बाद गले लगाने की परंपरा है। साथ ही जूते, चप्पल और पूजा के समय उपयोग किए गए वस्त्र का त्याग करने का भी विधान है। अतः भक्त शनिदेव की पूजा के बाद गले मिलते हैं। साथ ही अपने वस्त्रों का परित्याग करते हैं। इस विधि से शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त दुख, संकट और दरिद्रता दूर हो जाती है। साथ ही इच्छित वर की भी प्राप्ति होती है।
शनि मंदिर के अंदर स्थापित श्री राधाकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं 6 जून 2011 को श्री राधाकृष्ण की नई प्रतिमायें स्थापित की गई है। मंदिर के आसपास ही नवी, ग्यारहवी शताब्दी के मुरली मनोहर मंदिर, बटेश्वरा, पढ़ावली, मितावली, ककनमठ और कुन्तलपुर पुरातात्विक व धार्मिक महत्व के मंदिर और स्थान है। जिन्हें भी दर्शनीय व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।