MP के इस गांव में हर घर में है एक शिक्षक, पांच शिक्षकों को मिल चुका है राष्ट्रपति पुरस्कार, 5 हजार आबादी वाले गांव में 800 टीचर

Friday, Sep 05, 2025-01:59 PM (IST)

नरसिंहपुर: मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले का सिंहपुर गांव शिक्षा के जुनून और समर्पण की अनोखी मिसाल है। 1783 में बसे इस गांव की आबादी करीब आठ हजार है और यहां लगभग हर घर में एक शिक्षक मौजूद है। यही वजह है कि सिंहपुर को आज शिक्षा का तीर्थ कहा जाने लगा है।


शिक्षक बनने का सपना, न कि अफसर या इंजीनियर
देश के ज्यादातर गांवों में बच्चे बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर बनने का सपना देखते हैं, लेकिन सिंहपुर की पीढ़ियां शिक्षा की अलख जगाने को ही अपना लक्ष्य मानती हैं। यहां अध्यापन का जुनून ऐसा है कि नई पीढ़ी भी शिक्षक बनकर समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती है। हैरानी की बात ये है कि 5000 की आबादी वाले इस गांव में 800 शिक्षक हैं।  


पांच शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार

शिक्षा के प्रति इस समर्पण का नतीजा है कि अब तक गांव के पांच शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है। सबसे पहले 1964 में शेख नियाज़ को पहला राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। इसके बाद 1991 में महेश शर्मा और देवलाल बुनकर को यह सम्मान मिला। 1995-96 में मोतीलाल डेहरिया और नरेंद्र कुमार शर्मा को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया।

1995 में नरेंद्र शर्मा को पुरस्कार देते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा

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चार-पांच पीढ़ियों से जारी शिक्षा का दीप

इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां अध्यापन केवल पेशा नहीं बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा है। शेख नियाज़ के बाद उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी भी शिक्षक है। गांव का शर्मा परिवार तो अद्भुत उदाहरण है, जिसके 10 से ज्यादा सदस्य शिक्षक हैं। स्वर्गीय महेंद्र दत्त शर्मा, स्वर्गीय ज्वाला प्रसाद शर्मा और स्वर्गीय हरदयाल शर्मा शिक्षक थे। इनके छोटे भाई जेपी शर्मा हायर सेकेंड्री स्कूल के प्रिंसिपल रह चुके हैं। अब इस परिवार में सभी बेटे उनकी पत्नियां और प्रपौत्रवधु भी शिक्षक हैं। 


गांधी टोपी स्कूल की विरासत

सिंहपुर का बुनियादी विद्यालय, जिसकी स्थापना 1860 में हुई थी, आज भी अपनी अलग पहचान रखता है। यहां के शिक्षक और छात्र गांधी टोपी पहनने की परंपरा निभा रहे हैं। इसी स्कूल से जुड़े पांच शिक्षक राष्ट्रपति पुरस्कार पा चुके हैं। यही विद्यालय सिंहपुर की शिक्षा यात्रा की बुनियाद है, जो अब वटवृक्ष बन चुकी है।


ईमानदारी और खुद्दारी का सबक

सिंहपुर के शिक्षकों ने साबित किया है कि शिक्षा केवल नौकरी का साधन नहीं बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम है। यहां के शिक्षक न केवल शासकीय स्कूलों में बल्कि निजी संस्थानों में भी अपनी ईमानदारी, लगन और खुद्दारी से विशेष पहचान बना चुके हैं। यही वजह है कि सिंहपुर पूरे देश में शिक्षा के उज्ज्वल प्रतीक के रूप में जाना जाता है।


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Content Writer

Vikas Tiwari

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