तुम चिंता मत करो मैं भी आ रही हूं, पति की मौत के बाद पत्नी ने भी दे दी जान...
Thursday, Jan 09, 2025-09:21 PM (IST)
गुना। (मिसबाह नूर): साथ जीने और साथ मरने की कस्में सिर्फ किताबों में ही नहीं खाई जाती हैं बल्कि आज भी ऐसे लोग हैं जो न केवल एक-दूसरे को बेइंतहा प्यार करते हैं बल्कि उनकी जुदाई किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकते। कुछ ऐसा ही देखने को मिला है गुना जिले में ग्राम रमगढ़ा में। जहां एक युवक की मौत 3 जनवरी को हार्ट अटैक आने से हो गई। पति के वियोग से पत्नि इतनी भावुक हुई कि उसने एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन बार तब तक अपनी जान देने का प्रयास किया, जब तक कि वह अपने मंसूबों में सफल हो नहीं हो गई। यह कहानी है रमगढ़ा निवासी 32 वर्षीय मुकेश और 25 वर्षीय गीता की। दरअसल, 3 जनवरी को मुकेश को दिल का दौरा पड़ा और उसने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
मुकेश की पत्नी गीता उसे इतना प्रेम करती थी कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं हुआ, तब तक वह अपने पति के पास बैठी रही। उसने अपने पति के शव से बात करते हुए कहा था कि तुम चिंता मत करो मैं भी आ रही हूं। लोगों ने समझा कि पति की मौत के चलते गीता की दिमागी हालत ठीक नहीं है। लेकिन अगले ही दिन गीता ने फांसी लगाकर जान देने का प्रयास किया तो उसे किसी तरह बचा लिया गया, फिर गीता ने हाथ की नस काट ली तब भी उसकी मौत नहीं हुई। पति से निभाया वायदा पूरा करने का जुनून गीता पर इस कदर सवार था कि आखिकार उसने जहर खा लिया और इलाज के दौरान शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में उसकी मौत हो गई।
अब गीता के इस कदम को लोग अलग-अलग दृष्टिकोण से देख रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि गीता पति वियोग बर्दाश्त नहीं कर पाई तो कुछ रूढि़वादी व्यक्तियों का मानना है कि वह सती हो गई।
हालांकि इस पूरी प्रेम कहानी में गीता और मुकेश की दो मासूम बच्चियां अनाथ हो चुकी हैं जो सिर्फ 2 साल और 4 महीने की हैं। गीता ने जो किया वो सही था यह हरगिज़ नहीं कहा जा सकता। उन दो छोटी छोटी बच्चियों को तो यह भी नहीं मालूम कि वे अनाथ हो गए। इस घटनाक्रम को जीवनरूपी संघर्ष के युद्ध में गीता की पराजय ही कहा जाएगा।