गलत पत्र लगाकर रोड स्वीकृति का क्रेडिट लेने चलीं भाजपा विधायक - पोस्टर ज़ूम होते ही पूरी चालाकी एक्सपोज़!
Wednesday, Nov 26, 2025-01:47 PM (IST)
खंडवा। (मुश्ताक मंसूरी): राजनीति में कहा जाता है— “काम करो या न करो, श्रेय लेने में देर नहीं करनी चाहिए। लेकिन 5G के दौर में जब हर पोस्टर ज़ूम कर पढ़ा जाता है, तब चालाकी अपना सच खुद बयां कर देती है। खंडवा में भी ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें विधायक कंचन तनवे सोशल मीडिया पर घिरती नज़र आ रही हैं।
मामला क्या है?
डुल्हार–पंधाना मार्ग के लिए 52 करोड़ 46 लाख रुपए की स्वीकृति मिली है। जैसे ही भूमि पूजन की सूचना आई, खंडवा विधायक ने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर लगा दिया। पोस्टर इस तरह बनाया गया कि लगे जैसे उन्होंने ही यह बड़ा प्रोजेक्ट स्वीकृत कराया हो।
लेकिन असली समस्या यहाँ से शुरू होती है—
जब लोगों ने पोस्टर को ज़ूम किया तो जो पत्र दिखा, वह डुल्हार–पंधाना रोड का नहीं था! बल्कि किसानों के खेतों में भर रहे पानी की निकासी और पुलिया निर्माण के लिए लिखा गया पूरी तरह अलग पत्र था।
यानी श्रेय लेने की जल्दबाज़ी में— गलत सड़क, दूसरे काम का आवेदन, और तीसरे प्रोजेक्ट का फायदा—सब एक ही पोस्टर में जोड़ दिया गया!
जनता का सवाल: “पत्र ही नहीं लिखा तो श्रेय किस बात का?”
पोस्ट वायरल होते ही राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज़ हो गई।
विरोधियों ने कटाक्ष किया कि इस रोड के लिए कभी मुख्यमंत्री, पीडब्ल्यूडी मंत्री या किसी भी विभाग को खंडवा विधायक ने कोई पत्र लिखा ही नहीं।
इस परियोजना की स्वीकृति के लिए असल में पूरी मेहनत—
पंधाना विधायक छाया मोरे ने की थी। पत्राचार, पहल, मुलाकातें… पूरा होमवर्क उन्हीं का था।
सोशल मीडिया पर चुटकियाँ शुरू—
“अपने क्षेत्र के मुंदी रोड के लिए तो एक लाइन का पत्र नहीं लिखा, दूसरे क्षेत्र के रोड का श्रेय कैसे ले रही हैं?”
लोगों ने याद दिलाया कि खंडवा–मूंदी रोड, जो लगभग 30 किमी खंडवा विधानसभा में आता है, उसके लिए भी न कोई पत्राचार हुआ, न कोई स्वीकृति मिली। वहीं दूसरे विधायक नारायण पटेल इस रोड को स्वीकृति दिलाने में लगातार प्रयासरत हैं।
कांग्रेस नेताओं ने तंज कसा—
“श्रेय लेने की होड़ में पोस्टर का एक्सपोज़ होना ही असली विकास है।”
डिजिटल युग में श्रेय लेना आसान है, लेकिन सच छिपाना बेहद मुश्किल। खंडवा की राजनीति में यह घटना अब उदाहरण बन चुकी है कि— पोस्टर लगाने से पहले कम से कम पत्र का विषय तो देख लें! वरना जनता सब समझती है… और विपक्ष तो खास तौर पर ज़ूम करके पढ़ता है।
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