जीतू की सेहत पर लोकसभा चुनाव के परिणामों का क्या होगा असर?

Saturday, Jun 08, 2024-03:08 PM (IST)

भोपाल (हेमंत चतुर्वेदी): कुछ दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी से व्यक्तिगत मुलाकात हुई थी, उस वक्त मैंने उनसे लोकसभा चुनाव को लेकर उनकी प्लानिंग पर बात की, जाहिर सी बात है, बतौर प्रदेशाध्यक्ष उनकी ख्वाहिश कांग्रेस को एक बेहतर नंबर तक पहुंचाना था, लेकिन इसके इतर उनका एक और प्लान भी साफ नजर आ रहा था, जो जुड़ा था, बिखरती कांग्रेस और उसके हताश कार्यकर्ताओं में एक जान फूंकना, इसके लिए जीतू ने एक टाइमलाइन भी सेट करके रखी थी, जो लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों से कतई मेल नहीं खा रही थी। 

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ऐसे में जीतू के संबंधित सियासी टारगेट का क्या मतलब था? क्या जीतू को पहले से ही लोकसभा चुनाव के नतीजों का आभास था? अगर हां, तो क्या वो इसके लिए तैयार थे, और हाईकमान को भी संबंधित स्थिति को लेकर विश्वास में ले चुके थे? कथित तौर पर अपनी जिस जिद के तहत राहुल गांधी ने एकाएक कमलनाथ के इस्तीफे के बिना जीतू को प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया था, ऐसे में जीतू भी इतने नासमझ नहीं है, कि अपने नेता की जिद को पूरा करने की एवज में उससे एक कमिटमेंट तक न लें और जाहिर सी बात है, वो कमिटमेंट जुड़ा होगा, लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश कांग्रेस के लचर प्रदर्शन के बाद भी खुद पर राहुल और कांग्रेस हाईकमान के विश्वास कायम रखने से। जिस वक्त जीतू के राजनीतिक भविष्य पर मंथन से संबंधित ये रपट लिखी जा रही है, उस वक्त वह दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के सवालों का जवाब दे रहे हैं। 

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चुनाव की हार की जिम्मेदारी पहले क्षण ही अपने कंधों पर ले चुके जीतू कई कड़े सवालों का सामना कर रहे होंगे, लेकिन शायद उन्हें आलाकमान को वास्तविक स्थिति समझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश में कांग्रेस का ये हश्र हुआ, हालांकि जीतू को एक असफल अध्यक्ष ठहराकर उन पर हार का ठीकरा फोड़ने वाले सियासी जानकार और खबरनवीसों को इस विषय में थोड़ा सा ध्यान देने की जरूरत है, जिसे हम कुछ बिंदुओं के आधार पर समझ सकते हैं। 

•    विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का टूटा हुआ उत्साह। 

•    भाजपा द्वारा बड़े स्तर पर कांग्रेस को तोड़ना और दिग्गजों को अपने साथ मिलाना। 

•    इससे पहले की यानी कमलनाथ की टीम के साथ जीतू का सामंजस्य न बैठ पाना। 

•    कमलनाथ और दिग्विजय जैसे दिग्गजों का अपने - अपने क्षेत्र में सीमित हो जाना। 

•    जीतू के अध्यक्ष बनने से असंतुष्ट कई दिग्गज कांग्रेसी लोकसभा चुनाव में निष्क्रिए दिखे।

•    अन्य राज्यों की तरह INDI अलायंस के दलों का मध्यप्रदेश में कोई विशेष प्रभाव न होना। 

PunjabKesariये तो कुछ विशेष कारण है, जो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी को सामने रख रहे हैं, बाकी कई और राजनीतिक लिहाज से भी मध्यप्रदेश के हालात लंबे समय से कांग्रेस के प्रतिकूल ही रहे हैं, जिनका सामना पार्टी के नए नवेले अध्यक्ष जीतू पटवारी ने किया। हालांकि अगले चुनाव के लिए उनके पास एक लंबा समय है, और अब अपनी पार्टी को खड़ा करने में उसके कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए वो क्या क्या करते हैं, इस पर हर किसी की नजरें टिकी हुई हैं।


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Content Editor

Himansh sharma

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