रीवा वेटनरी काॅलेज में कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे पर रिसर्च, किसानों को भी किया जा रहा प्रशिक्षित

11/24/2019 2:03:17 PM

रीवा (शादाब सिद्दीकी): जिले में वेटनरी काॅलेज के विद्यार्थी कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे से रिसर्च का हुनर सीख रहे हैं। साथ ही यह उनके लिए स्वरोजगार का साधन भी बन रहा है। मुर्गे की इस प्रजाति को व्यवसाय का दर्जा दिलाने के लिए आदिवासी किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। ताकि यह किसानों के लिए आजीविका का साधन बन सके। साथ ही उनके रख रखाव की भी जानकारी दी जा रही है। जिससे वो इसे आय का धंधा बनाकर मुनाफा कमा सकें।

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रीवा वेटनरी कालेज को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से इस योजना में सहायता प्राप्त हो रही है। कड़कनाथ मुर्गों के बड़े होने के बाद इनकी बाजार में बिक्री कर दी जाती है। बिक्री से मिलने वाली राशि से मुनाफा काट कर छात्रों में बांट दिया जाता है। एक तरफ छात्रों को इसके रखरखाव और लालन- पालन की जानकारी दी जाती है। साथ ही मुर्गों में होने वाली बीमारी और उनके उपायों के बारे में भी बताया जाता है।

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कड़कनाथ मुर्गा काले रंग का होता है और नर्मदा निधि रंगीन होती है। कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे का मांस भी काला होता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें प्रोटीन की मात्रा ब्रायलर मुर्गों की अपेक्षा चार से पांच गुना ज्यादा होती है। साथ ही इनमें आयरन भी ज्यादा होता है जो बच्चों, गर्भवती महिलाओं और ह्रदय एवं सांस जैसी बीमारियों के लिए काफी फायदेमंद होता है।

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कड़कनाथ प्रजाति की मुर्गियों के अंडों में वसीय अम्ल ज्यादा होता है जो काफी फायदेमंद होता है । वहीं इनके अंडों को एक्युवेंटर मशीन में रखा जाता है और बीस से पचीस दिनों में इससे चूजे निकलते है जो दो से तीन महीनों में बड़े हो जाते हैं। किसानों को कड़कनाथ प्रजाति के पांच- पांच चूजे मुफ्त दिए गए हैं।

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Edited By

Jagdev Singh

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