खैरागढ़ सिविल अस्पताल में दर्दनाक हादसा, लाइन में खड़ी मां की गोद में बुझ गई मासूम ज़िंदगी

Thursday, Oct 09, 2025-03:28 PM (IST)

खैरागढ़ (हेमंत पाल) : खैरागढ़ सिविल जिला अस्पताल की ओपीडी में बुधवार को एक ऐसा दर्दनाक दृश्य बनी, जिसे जिसने भी देखा, उसका दिल दहल उठा। इलाज की उम्मीद लेकर अस्पताल पहुंची एक मां के हाथों से उसकी दुनिया ही छिन गई। ओपीडी की लंबी लाइन में खड़ी उस मां की गोद में एक साल का मासूम तोमेश यादव हमेशा के लिए मौन हो गया। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता और प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है।

कागज़ी व्यवस्था बनाम ज़मीनी सच्चाई

प्रदेश में मातृ-शिशु स्वास्थ्य, पोषण मिशन और मुफ्त उपचार योजनाओं की लंबी सूची है। कागज़ों में हर बच्चे को पोषण, हर मां को देखभाल और हर परिवार को स्वास्थ्य सुरक्षा का वादा किया गया है। लेकिन जब असल ज़िंदगी में एक मां अपने बीमार बच्चे को गोद में लिए सिर्फ़ पर्ची कटाने की लाइन में ही खो देती है,

सवाल उठना तो लाज़िमी है, आखिर सरकारी स्वास्थ्य तंत्र किसके लिए है?
क्या गरीब की जान की कीमत सिर्फ़ एक कागज़ की पर्ची भर है?

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गरीबी, बीमारी और इंतज़ार तीनों से हारा मासूम तोमेश

जानकारी के अनुसार, टेकाडीह निवासी खेलन यादव, जो गाय चराकर और मजदूरी कर परिवार का पेट पालता है, अपने एक वर्षीय बेटे तोमेश को लेकर बुधवार सुबह अस्पताल पहुंचा था। तोमेश जन्म से ही कुपोषित और निमोनिया से ग्रसित था। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि बच्चे का नियमित उपचार नहीं हो सका। अस्पताल के बाहर लंबी लाइन में जब मां पर्ची के इंतजार में खड़ी थी,

तोमेश की सांसें धीमी होने लगीं 

लोगों ने ध्यान दिलाया, डॉक्टरों को बुलाया गया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मां की गोद में ही बच्चे की सांसें थम गईं।

अस्पताल परिसर में मातम रोती मां, मौन सिस्टम

डॉक्टरों द्वारा मृत घोषित करते ही मां ज़मीन पर गिर पड़ी, पिता खेलन यादव ने बच्चे को सीने से लगाकर पुकारा उठ बेटा, अब ठीक हो जाएगा…पर वहां केवल सन्नाटा था। अस्पताल के हर कोने में बस एक ही सवाल गूंज रहा था अगर समय पर इलाज मिलता तो क्या यह मासूम मरता?

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खैरागढ़ अस्पताल में लगातार मौतों की गूंज

यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ महीनों में खैरागढ़ अस्पताल में लापरवाही और इलाज में देरी से मौतों के कई मामले सामने आ चुके हैं। कभी प्रसूता की मौत, कभी नवजात की असमय मृत्यु हर बार जांच के आश्वासन दिए गए, पर नतीजा सिफर। प्रशासन अब भी भवनों की चमक और फाइलों की रिपोर्टों में उलझा हुआ है।

जनता पूछ रही जिम्मेदारी किसकी?

अगर अस्पताल में स्टाफ कम है, तो सरकार जवाब दे। अगर प्रक्रिया धीमी है, तो प्रबंधन सुधार करे। अगर सिस्टम में लापरवाही है, तो दोषियों पर कार्रवाई हो। लेकिन अब समय है कि शोक संदेश की जगह जवाबदेही तय की जाए।

घटना के बाद की कार्रवाई

घटना की जानकारी मिलते ही स्वास्थ्य विभाग के शांतिदत्त ने परिवार से संपर्क कर मुक्तांजलि एक्सप्रेस एंबुलेंस से शव को गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था की। प्रशासन ने आर्थिक सहायता की अनुशंसा की है। पर ग्रामीणों का कहना है कि मुआवजा नहीं, जिम्मेदारी चाहिए।

गांव में पसरा मातम

टेकाडीह गांव में बुधवार शाम तोमेश का अंतिम संस्कार किया गया। गांव के हर घर में मातम पसरा रहा। ग्रामीणों ने कहा अगर स्वास्थ्य सेवाएं गरीब तक पहुंचतीं, तो आज यह बच्चा ज़िंदा होता। महिलाओं की आंखों में आंसू और मन में आक्रोश था।


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meena

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