त्रिमूर्ति महामाया मंदिर जहां एक साथ विराजती है तीन देवियां! दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामनाएं

Tuesday, Sep 23, 2025-06:36 PM (IST)

धमधा (हेमंत पाल) : छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का धमधा एक ऐतिहासिक नगर है। यह नगर आज भी एक अलौकिक शक्ति की उपस्थिति, सदियों पुरानी आस्था और राजसी इतिहास की कहानियों से जीवंत है। यहां स्थित त्रिमूर्ति महामाया मंदिर भारत का ऐसा अनोखा स्थल है, जहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की साकार मूर्तियां एक ही गर्भगृह में विराजमान हैं। जहां वैष्णो देवी जैसे प्रतिष्ठित धामों में त्रिदेवी पिंड रूप में पूजनीय हैं, वहीं धमधा में जीवंत, मूर्तिरूप में दर्शन देती हैं यह इस मंदिर को न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि संपूर्ण भारत की आध्यात्मिक धरोहर में अद्वितीय बनाता है।

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स्वप्न से प्रारंभ हुई देवी स्थापना की चमत्कारी कथा

माना जाता है कि गोंड वंश के राजा दशवंत सिंह की माता को एक रात्रि देवी महाकाली ने स्वप्न में दर्शन दिए। उन्होंने कहा...मैं सिंहद्वार में लक्ष्मी जोगीगुफा में और सरस्वती इमली के वृक्ष के नीचे भूमिगत हूं। हमें खोजो और एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित करो। स्वप्न के बाद राजा रानी ने खोज कर तीनों प्रतिमाएं प्राप्त कीं और वर्ष 1589 में त्रिमूर्ति महामाया मंदिर की स्थापना हुई। आज भी मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे पर अंकित शिलालेख इस अलौकिक घटना के प्रमाण स्वरूप मौजूद हैं।

एक मंदिर में तीन साकार देवियां: दुर्लभ और दिव्य

त्रिमूर्ति महामाया मंदिर की 432 वर्षों से भी पुरानी प्रतिमाएं देश में अपने तरह की एकमात्र संरचना हैं। जहां अन्यत्र त्रिदेवी के अलग-अलग मंदिर या प्रतीक रूप मिलते हैं, वहां धमधा में महाकाली (संहार शक्ति), महालक्ष्मी (धन-वैभव की अधिष्ठात्री), महासरस्वती (ज्ञान-विद्या की देवी) एक साथ एक गर्भगृह में प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिर केवल श्रद्धा का केंद्र नहीं, बल्कि उस समय के शिल्पकला, राजनीतिक सत्ता और धार्मिक विश्वासों का एक जीवंत साक्ष्य है।

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नवरात्रि में आस्था की अलौकिक ज्योति

नवरात्रि के नौ दिन यहां श्रद्धा की ज्योति से मंदिर प्रांगण जगमगाने लगता है। सैकड़ों की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से ही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्राचीन शिलालेखों में पुत्र प्राप्ति की सिद्धि का भी उल्लेख मिलता है।

वर्ष 1980 में स्थापित त्रिमूर्ति महामाया न्यास समिति के अंतर्गत यह परंपरा और भी व्यवस्थित हुई। हालांकि कोरोना काल में कुछ वर्षों तक सार्वजनिक आयोजन सीमित रहे, परंतु श्रद्धालुओं की अखंड आस्था में कभी कमी नहीं आई।

इतिहास, वास्तुकला और गोंड संस्कृति की त्रिवेणी

मंदिर के सामने स्थित भव्य सिंहद्वार, छत्तीसगढ़ के प्राचीनतम प्रवेशद्वारों में से एक है। बलुआ पत्थरों से बने इस द्वार में भगवान विष्णु के दशावतारों की शिल्पकारी देखी जा सकती है। एक ओर कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन दूसरी ओर परशुराम, राम-बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतार...शिल्प विद्वानों के अनुसार, यह छत्तीसगढ़ में दशावतार प्रतिमाओं की सबसे कलात्मक प्रस्तुति है।

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गोंड तीर्थ: बूढ़ादेव मंदिर और किलानुमा महल

मंदिर के पीछे गोंड समाज के आराध्य बूढ़ादेव का मंदिर स्थित है। इसके सामने 12 स्तंभों वाला प्राचीन मंडप है, जहां आज भी गोंड समाज सालभर पूजन करता है। बूढ़ादेव मंदिर के पास गोंड वंश का किलानुमा महल स्थित है, जो आज भले ही खंडहर है, परंतु उसकी पत्थरों की दीवारें, मेहराबदार दरवाजे, तलघर और सीढ़ियां राजसी वैभव और साहस की मौन कहानी कहते हैं।

बूढ़ातालाब में बनी सीढ़ियां और झाझा (कुएं) के अवशेष बताते हैं कि तालाब के भीतर गढ़ निर्माण की अवधारणा थी जो अब केवल पांडुलिपियों में सिमट कर रह गई है।


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meena

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