सरकारी कर्मचारियों के लिए बड़ी खबर! MP में दो बच्चे कानून खत्म करने की तैयारी!

Tuesday, Nov 25, 2025-04:46 PM (IST)

भोपाल : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान “हर परिवार में तीन बच्चे होने चाहिए” ने मध्यप्रदेश के उन 400 से अधिक सरकारी कर्मचारियों में नई उम्मीद जगा दी है, जो दो से अधिक संतान वाले नियम के कारण वर्षों से नौकरी गंवाने के खतरे में जी रहे थे। कई कर्मचारियों पर विभागीय जांचें चल रहीं हैं, कुछ को वरिष्ठ अधिकारी नियम उल्लंघन का हवाला देकर लगातार डराते-धमकाते रहे हैं।

सरकार बंदिश हटाने की तैयारी में, प्रस्ताव तैयार

भागवत के बयान के बाद एक बार फिर “टू चाइल्ड लॉ” पर चर्चा तेज हो गई है। सरकार ने इस नियम में ढील देने के लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, उच्चस्तरीय चर्चाओं के बाद यह बंदिश हट सकती है। यदि ऐसा होता है, तो न सिर्फ 400 प्रभावित कर्मचारी सुरक्षित हो जाएंगे, बल्कि राज्य के 12 लाख शासकीय और संविदाकर्मी, जो दो से अधिक संतान रखने का विचार करते हैं, वे भी कानूनी उलझनों से मुक्त होंगे।

2001 में दिग्विजय सरकार ने लागू किया था दो बच्चों का नियम

मध्यप्रदेश में दो बच्चों वाले नियम की शुरुआत वर्ष 2001 में दिग्विजय सिंह सरकार ने की थी। मप्र सेवा भर्ती सामान्य शर्ते नियम 1961 में संशोधन कर यह प्रावधान लागू किया गया कि सरकारी सेवक दो से ज्यादा संतान नहीं रख सकते। इसका उद्देश्य उस समय बढ़ती जनसंख्या के दबाव को नियंत्रित करना था। परन्तु बाद के वर्षों में इस नियम ने कई दंपत्तियों को जटिल परिस्थितियों में डाल दिया।

क्यों फंस गए कई सरकारी कर्मचारी?

कई शासकीय सेवकों ने बताया कि उनका चयन 2001 के बाद हुआ, लेकिन उन्हें नियमों की जानकारी देर से मिली। एक कर्मचारी के अनुसार “मैं 2005 में नौकरी में आया। नियम की जानकारी ही नहीं थी। पता चलने तक तीन बच्चे हो चुके थे। बाद में विरोधियों ने शिकायत कर दी।”

कई परिवारों में और भी मुश्किलें सामने आईं

  • दो बच्चे हुए, रिकॉर्ड में दर्ज भी हो गए, लेकिन बाद में एक बच्चे की मृत्यु हो गई।
  • परिवार दोबारा संतान चाहते हैं, पर नियम आड़े आ गया।
  • कोविड काल में ऐसे कई प्रकरण सामने आए, लेकिन किसी को भी नियम में छूट नहीं मिली।

नया खतरा… शहरी परिवारों में एकल संतान का चलन बढ़ा

बड़े आर्थिक दबाव, महंगी शिक्षा और बदलती जीवनशैली के कारण मध्यप्रदेश के शहरों में केवल एक बच्चे का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। वहीं लोगों का कहना है कि “समय बदल गया है, खर्च बढ़े हैं। एक ही बच्चे की बेहतर परवरिश कर पाना ही चुनौती है।”

 


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meena

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