शहडोल अस्पातल में रिश्वतखोर डॉक्टरों का नया खेल! मरीजों से लिखवाया जा रहा ‘पैसा नहीं लिया’ का पर्चा
Monday, Sep 22, 2025-05:20 PM (IST)

शहडोल (कैलाश लालवानी): शहडोल जिले का कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां डॉक्टरों ने ऐसा तरीका खोज निकाला है, जिसे सुनकर कोई भी कहेगा.. ‘वाह रे शहडोल, तू तो गजब है!’ जिला अस्पताल में वर्षों से यह दस्तूर चला आ रहा है कि मरीजों का प्राथमिक इलाज तो किया जाता है, लेकिन जैसे ही ऑपरेशन की नौबत आती है, उन्हें मोटी रकम का बिल थमा दिया जाता है।
अपराध से पहले निकाला बचाव का रास्ता
अस्पताल के डॉक्टर खुद ही मरीजों को ऑफर देते हैं। ‘बाहर करवाओगे तो इतना खर्चा आएगा, हम आधे में यहीं कर देंगे।’ सवाल उठता है कि सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन मुफ्त होना चाहिए, तो यह आधे में सस्ता पैकेज किस जादुई बाजार से आ गया? अस्पताल ने रिश्वतखोरी को बचाने का नया तरीका निकाला है। मरीजों को भर्ती करते समय बाकी कागजों के साथ एक सत्यापन-पत्र थमा दिया जाता है, जिसमें लिखा होता है, ‘हम अपनी मर्जी से इलाज कर रहे हैं, हमसे कोई पैसा नहीं लिया गया, हम रिश्वत नहीं दे रहे, न ही किसी ने मांगी’ यह दस्तावेज़ हर मरीज के लिए अलग-अलग लिखा जाता है और कई बार कर्मचारी ही इसे भर देते हैं। मरीज या परिजन बस हस्ताक्षर कर देते हैं। यानी अपराध करने से पहले ही बचाव का इंतज़ाम!गरीब मरीजों की मजबूरी
इलाज कराने आए गरीब और मजबूर लोग, जो निजी अस्पतालों का खर्चा वहन नहीं कर सकते, उन्हें यही कागज थमा दिए जाते हैं। बीमार मरीज और परिजन मजबूरी में लिखने को तैयार हो जाते हैं कि ‘हम पर कोई दबाव नहीं है’ इन ‘घोषणापत्रों’ की प्रतियां सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। लोग पढ़कर ठहाके लगा रहे हैं और इसे नया ‘जुगाड़ू जस्टिस’ या ‘रिश्वत का लीगल पेपर’ कह रहे हैं। शहडोल का इतिहास ऐसे ही मामलों से भरा पड़ा है। पेंट घोटाला, ड्राई फ्रूट घोटाला और अन्य घोटाले। जांच का नतीजा अक्सर कागज़ों में गुम रहा। अब यह नया ‘ऑपरेशन रिश्वत बीमा’ भी शायद उसी अंजाम तक जाएगा।
अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया
पूर्व सिविल सर्जन जी एस परिहार ने कहा कि यह व्यवस्था पहले बंद कर दी गई थी। वर्तमान सिविल सर्जन डॉक्टर शिल्पी सराफ ने कहा, यदि ऐसा हो रहा है तो यह गलत है, मैं इसकी जानकारी लेकर कार्रवाई करूंगी।
अब इस पूरे मामले में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है, कि गरीब और लाचार मरीज आखिर कहां जाएं? जब सरकारी अस्पताल भी पैसों की चौखट पर इलाज का दरवाजा खोलते हैं, तो मजबूर लोगों के पास झूठे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।